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Friday, October 02, 2009

“अखबार में कुछ बुरा”


“अखबार में कुछ बुरा”







आज फ़िर पढ़ लिया अखबार में, उसने कुछ बुरा
हाँ, कुछ ही, क्योंकि दुनिया में तो हो रहा है और भी बुरा
पर उसे तो लगता है यही बहुत बुरा
नहीं सोच पाती वह, क्या हो सकता है इससे भी बुरा
नहीं समझ पाती वह, जिन पर गुज़रता है यह सब
क्या बीतती होगी उन पर भला
खिन्न सा हो गया मन, जाने किससे है उसे गिला

अखबार के आखिरी पन्ने पर छपे
इन छोटे मोटे हादसों को
मनुष्य को मनुष्यता से दूर करती
इन दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को
ज़रा सी लालच, हवस, मूर्खताभरी नफ़रत
और द्वेष से जन्मे इन अपराधों को
गलती से पढ़ लेती है जब वह
मानव की आसुरी प्रवृत्तियों की पराकाष्ठाओं को

हाँ, गलती से ही तो पढ़ लेती है वह
क्योंकि नहीं चाहती उन्हें पढ़ना
बड़ा ही दर्दनाक होता है ना
सच्चाइयों से रुबरु होना
पर जानती है वह, बन्द कर लेने से आँखें
हकीकत बदल नहीं जाती
और उनका क्या जो नहीं कर सकते अनदेखा
जिन पर होती है ये ज़्यादती

बहुत खुश और महफ़ूज़ है वह
बड़ी खूबसूरत है उसकी दुनिया
खुले पंख उसके
और आंखों में आसमान नया
पर कसैला सा हो गया है मन
जब से पढ़ लिया है कुछ बुरा, उसने अखबार में
देश दुनिया की तरक्की की बातों से भरे
उस अखबार में

आज फ़िर नहीं लग रहा मन उसका
प्रगति की बातों में
नहीं लग रहा है उसका मन
प्रेम की बातों में
नहीं मिल रही शांति
सौंदर्य की बातों में

मन तो अजीब सा हो गया था
तड़प रहा था हृदय और ये चाह रहा था
कि जितना आसान है
अखबार के आखिरी पन्ने को जला देना
काश जला सकती फ़ाड़ के, इस भयानक पन्ने को
अपने देश की किस्मत की किताब से
मिटा देती खौफ़,
बेबस बुजुर्गों, सहमे बच्चों
और डरी हुई औरतों के नसीब से
नहीं लग रहा है मन उसका
पढ़ लिया है कुछ बुरा उसने,
अखबार में जब से…

तीन दिन पहले ही लिखी ये कविता आपको कैसी लगी ? जानती हूँ आप सब मु्झसे बहुत नाराज़ होंगे, पिछ्ली पोस्ट के बाद बहुत लम्बा गैप हो गया है ना !
दरअसल पिछ्ली पोस्ट के बाद तो मेरी सेहत का अलार्म बज गया था… कैसे ? अरे ये तो आप मेरे
बनाये इस स्केच को देखकर ही समझ सकते हैं… कैसा है ? वो पहले वाला भी मैंने ही बनाया है।


वो क्या है कि कुदरत को खालीपन पसन्द नहीं और मुझे बर्दाश्त नहीं… मतलब ये कि जब मैं व्यस्त नहीं होती तो अस्त व्यस्त हो जाती हूँ । और फ़िर मेरी सेह्त का अलार्म मुझे कह जाता है कि “लापरवाह लड़की ! वक़्त पर खाया कर और वक़्त पर सोया कर…!”
“अच्छा ठीक है…” मैं अपने आलसी अन्दाज़ में कह्ती हूँ और दो चार दिन में फ़िर अपनी गाड़ी चलने लगती है।

आजकल तो मैं योग करती हूँ और स्वस्थ हूँ, मस्त हूँ और व्यस्त हूँ ।
एक तो एमएससी का रिज़ल्ट आने में इतनी देर हो गयी थी… दूसरा पीएचडी के एडमिशन्स हैं कि शुरु ही नहीं हो रहे हैं। अब तक किसी तरह टाइमपास किया… ब्लोग बनाया, स्केच बनाये… 6 सितम्बर को इन्जिनियर्स सप्ताह के शुभारम्भ पर सीनियर रेलवे इन्स्टीट्यूट में “Responsibilities of youth towards country” विषय पर स्पीच दिया (पापा रेलवे में सेक्शन इन्जिनियर हैं) और 15 सितम्बर को इन्जिनियर्स सप्ताह की क्लोसिन्ग पर “पर्दे में रहने दो” सोन्ग पर डान्स किया। मज़ेदार रहा। पर कुछ भी हो… पढ़ाई के बिना ज़िन्दगी में मज़ा नहीं आता।

नवम्बर में पीएचडी के एन्ट्रेन्स एक्ज़ाम होने की सम्भावना है। आजकल इसीलिये पढ़ाई कर रही हूँ… मुझे रात में पढ़ना पसन्द है। मेरे लिये दुआ ज़रुर कीजियेगा… आप तो जानते हैं ना कि मुझे ‘पढ़ाई के बिना ज़िन्दगी में मज़ा नहीं आता।’


29 सितम्बर को मैं सत्रह साल की हो गयी। मेरा ये बर्थडे अब तक का मेरा सबसे अच्छा बर्थडे था… दोस्तों की शुभकामनायें तो रात 12 बजे से ही आनी शुरु हो गयीं थीं।
सुबह सबसे पहले मम्मी पापा और रवि ने विश किया, उसके बाद मैं कोलेज चली गयी थी। लौट कर कम्प्यूटर खोला तो देखा कि आप सब लोगों ने कितना सारा प्यार यहाँ बरसा रखा है (भीग गयी थी मैं तो!)… मुझे बहुत अच्छा लगा! Thank you sooooo much ! शाम को मम्मी पापा रवि और मैं “स्वाद री ढाणी” गये थे… खूब मज़े उड़ाए…


हालांकि कुछ फ़्रेन्ड्स ऐसे भी थे जिन्होंने अगली रात की 12 बजने से कुछ सेकन्ड पहले तक इन्तज़ार करवा के मेरे धैर्य की परीक्षा ली, सबसे ‘लेटेस्ट’ विश करना चाहते थे मुझे! (मैं सच में दुखी हो गयी थी), पर मज़ा बहुत आया… सबने याद रखा और सबने विश किया। और बिलेटेड विशेस के तो क्या कहने !

पर अब मस्ती बहुत हो चुकी… अब कोई सिर्फ़ डिक्शनरी पर बैठकर तो स्पेलिन्ग्स सीख नहीं सकता… मैं पीएचडी करके पढ़ाई खत्म कर लेना चाहती हूँ, इसके बाद 19 साल की होने के बाद NET का एक्ज़ाम और 21 साल की होने के बाद IAS देना है।
लोग कहते है… ‘तुम्हारे पास तो अभी बहुत वक़्त है… ’
‘अजी, तो क्या बर्बाद करने के लिये है ?’

बस इसीलिये कुछ न कुछ करती रह्ती हूँ…

और हाँ, बापू का बर्थ डे मुबारक हो!
:)

एडिट : अरे हाँ, क्या आपने ये देखा ? http://www.udanti.com/2009/09/blog-post_9782


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